शुक्रवार, 8 मई 2015

आबो हवा सबब है सगरा हमरा द्वारे द्वारे

माया जगत भृंग इंसा आस सुवास सहारे।
फौलादी हौसला बल हर दुर्निवार निवारे।।
काम कुसुम तजि काम निरत हो जा सारे।
मन्दिर मस्जिद गिरजाघर आस्था गुरूद्वारे
देख पेख निज पर कर्म भाग्य मन मा सोच।
हैं हम अजूबे जग अजब अजायबघर पोच।
कर्म धर्म जीवन अंगी अंग भंग न हो लोच।
प्रकृति नटी अगनित नामी हैअजब कोच।। पाथर नर पूजित अपूजित अभिधाने थाने।
मगता दाता सजीव निर्जीव मूरत मनआने।
महा मोह तम आच्छादित जाने अनजाने।
पारस प्रभु परस दरस सरस हो जीवन माने आबो हवा सबब है सगरा हमरा द्वारे द्वारे।
मीठा खारा खुशबू बदबू रूप न्यारे न्यारे।।
जग जानो जव जू जात जवास पावस जारे।
बिन जगे भ्रम ना मिटे मिट जाय ख्वाब सारे

गुरुवार, 7 मई 2015

दिशा

अति हितकारी दिशा दशा देश देव  होते
तय करना नित नूतन लक्ष्य कदम सजोते।
देश दिशा नव कीर्ति ले संसार में फैले
युवान महान हो भारत गान गावे शैले शैले
पर मन्दिर मस्जिद गिरजाघर बिक जाते
पूज्य स्थानों पर भी हैं घाती घात लगाते।
निज में रम गम दूजो को नित नव दे जाते
रम में रम ज्ञान मान का पाठ पर को पढाते
अद्भुत
हैं हम हम जो चाहे कर जाते
लूट तन्त्र है लोकतंत्र यह सद वाक्य रटाते
ऋषि महर्षि हाजी पीर औलिया गाथा गाते
सब धर्मो के आदर्शों को कहते सुनते पाते।
पुरुषोत्तम का देश हमारा हम हैं इटलाते
गीता ने दी दिशा देश धर्म कोहैं नित गाते।
तय कर निश्चित दिशा दिया देवों ने हमको
कृतज्ञ हैं देश सदा पूजे प्रतिपल उनको।।
पूजित होने की चाह आह दे आज सबको
दिशाहीन से दिशाज्ञान मिले कैसे हमको।
खुद ही करो निर्माण खुद का अब तो
दिशा बोध हित शोध करो कर्म भी तो।
बढ़ा कदम निज सोच समझ से हो अभय।।
सद पथ से ही होगी निश्चित ही सद जय।।

दे भुक्ति मुक्ति हैं जग तारन तरन

सदा साथ कमलाकर किंकर।
कुन्दकली सम वरदंत मनोहर।।
मति विमला सबला विद्या वर।
सुमिरत मोह कोह हटे सत्वर।।
दांत पीस कर मुष्टिका प्रहार।
रन छोड़े शत्रु दांत खट्टे कर।।
दांत से ही सेहत सवरती सही।
मुंह दांत नहीं तो पेटआंत नहीं।।
इन्द्रिय हैं हम सक्रिय हैं संसार।रहा
दांत कटी रोटी कर्ण साहै धार।।
आकाश वृत्ति ही जब जग जात।
गिनों क्यों दान बछिया के दांत।।
सफेद पोशों का व्यवहार यहाँ।
हाथी दांत सा ही धोखा जहाँ।।
कर्म धर्म गीता मर्म है बसाना।
जहाँ में जहाँ तक जगह पाना।।
बुलन्दियो की इमारतें उठाना।
रह जाय दंग दुश्मन व जमाना।।
युगों युगों से सबने देखा जाना।
अमितों का दातों अंगुली दबाना।।
दुःख दर्द दांत तालू में जमना।
मृग मरीचिका है दिवा सपना।।
ज्ञान अनुभव जीवन में भरना।
देगा सब दूध  दांत का टूटना।।
द्वितीय बचपन जीवन में आता।
इंसा को तब है कुछ नहीं भाता।।
आँख कान नाक दांत त्वचा गुन।
हो जाते हैं जब सभी अंग सुन्न।।
पवन तनय संकट हरन सुमिरन।
दे भुक्ति मुक्ति हैं जग तारन तरन।।

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

होगी जय मानवता की जन मन कह रहा है

राम नाम की कृपा छाव सब निधि का ठाव।
जड़ चेतन में मानव रखे करतार सम भाव।
कोयल कूक प्यारी है कौवा करे काव काव।
न्यारे न्यारे रूप रंग ढंग इन्सा फैलाये पाव।
गुन दोष मय मानव पर पर में ही पेखे दोष।
शुद्ध सात्विक सद्कर्मी मैं शेष सब सदोष।
हर शान मान पर पर काट बन जा निर्दोष।
लपके झपके तड़के भड़के मैं मैं में मदहोश
विश्व किन्ह करतार भूल जन माने निजको
मानवता नैतिकता पट फाड़ पहने मयको।।
दे अंक शतप्रतिशत सद असद स्वकर्मको।
योगी यती भेष धर बंचक पूजवाते स्वयंको
संत हंस जन हैं इस जहां को स्वर्ग बनाते।
दुःख कातर जन तन मनसे परकष्ट मिटाते
गुन गाहक जन गन से हैं अवगुन हटाते।
पय पा बिकार मिटा गुन गहन कर जाते।।
इस दुनिया में जहाँ तक नजर आ रहा है।
किसी को दिखावा किसी को सद भा रहाहै
इंसानियत जवां हो मानव मन भा रहा है।
होगी जय मानवता की जन मन कह रहा है

रविवार, 22 मार्च 2015

शक्ति

मम समाज नर नारी बिराजे।
पुरुष परसन नर मादा साजे।।
सचर अचर चर कहता जग।
जड़ चेतन मन नहि नाग नग।।
नारी शक्ति सी प्रगट हुवे हम।
देवी दुर्गा दुर्गति हारिणी हरदम।।
राम कृष्ण की धरा हमारी।
राधा सीता सबकी महतारी।।
द्रोपदी चिर हरन सीता निष्कासन।
शक्ति श्रधा केंद्र हैं यहाँ वीरासन।।
निज नयन देख सब श्रवन पेख।
मटका भरते मिटाते निज लेख।।
राम कृष्ण की इस पावन भूमि पर।
माँ बहना बेटी है रोती निज जीवन पर।।
नवरात्रि मनाते नव शक्ति जगाते यहाँ।
शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी में रम जाते जहाँ।।
काम पिपासु नरक बना देव धरा लजाते।
भोग्या मान पशु मानव थोडा नहि शर्माते।
दया माया ममता लज्जा श्रद्धा बेचक जन।
आस बिश्वास ईमान मान विरत होता मन।
चन्द्र घंटा कुष्मांडा स्कन्धमाता माता माता
पर व्यवहार बगुला भगत को हैनहि सुहाता
कात्यायनी कालरात्रि कृपा हित रत जन।
महागौरी का प्रेम पराग पातानिश्छल मन।
लक्ष्मी सरस्वती मेधा दुर्गमा दुर्गमाश्रिता।
सिध्दिदात्री ब्रह्माणी सब शक्ति मिश्रिता।।
मानते तो मानो सब माँ बहना बेटी शक्ति।
नारी शक्ति की पूजा से हो जा सब भक्ति।।

शनिवार, 21 मार्च 2015

संवत दो हजार बहत्तर कीलक अभिधानी।

नूतन नव संवत्सर बने जन जन सन्मानी।
संवत दो हजार बहत्तर कीलक अभिधानी।
राग द्वेष से दूर यती सा हम हो स्वाभिमानी
सद लक्ष्य प्राप्ति हित बने बगुला जू ध्यानी।
असद त्याग सब सद पाये गाये गुन ज्ञानी।
चहु दिशि कीर्ति पतंग बन जाय जन मानी।
निशि वासर करे कृपा मइया अम्बे भवानी।
दे दीनानाथ दीनबन्धु दयानाथ दयादानी।।

रविवार, 15 मार्च 2015

निखर जा ज्ञान मान पंकज जूभारत-पुष्कर

बंदौ गुरु पद कंज नित नव ज्ञान संवाहक।
देश काल गुन धर्मसे हुवे अध्यापकशिक्षक
वैदिक लौकिक काल विशाला।
परिवर्तन प्रकृति अंग कहाला।।
चार पदारथ करतल वाके।
नामी बने जो शिक्षा पाके।।
विश्व गुरु हम थे बन जावे।
शिक्षक शिक्षार्थी जोर लगावे।।
गाव शहर नित अलख जगावे।
अशिक्षा रोग को  हम मिटावे।।
शिक्षा मातु पिता जु हितकारी।
नवोन्मेषी व पालनकारी।।
है नाम धरे जगत अनेका।
चयन करे निज बल बुध्दि एका।।
जी जा लगा निज पथ शिक्षार्थी।
हर शिक्षा करे सफल विद्यार्थी।।
बिनु शिक्षक नहीं शिक्षार्थी शिक्षा।
परीक्षक परीक्षार्थी परीक्षा।।
कल युग माह कल बोल बाला।
धावा बोल कल खोल ताला।।
लेकर ज्ञान कुसुम निज साथा।
महकाओ जग भारत माथा।।
नैतिक गुन से बधो बधाओ ।
सद शिक्षक शिक्षार्थी बन जाओ।।
चरित चारू चमके चमकाओ।
चहु दिशि आफ़ताब सा छाओ।।
देख दशा दयनीय देश दिन दूभर दुष्कर।
निखर जा ज्ञानमान पंकजजू भारतपुष्कर।