गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

समन्दर

मिले कब छाया काया से
हर बिन्दु कब करता समागम सागर से।
राम श्याम कब आये काम
दुनिया है कैसे कैसे का इकअद्भुत धाम।
यहाँ सब है सब हैं निज रूप
नजर अपनी अपनी पर कोई नहीं कुरूप।
आश डोर थामे चले धाम
दुनिया है समन्दर जहाँ मिले मोती निधान।
आशा ही अमर धन जहाँ
समन्दर अकूत बहू सम्पदा का दाता यहाँ।
पर विनय को दासता मान
जलधि ने भी नहीं किया राम का सम्मान।
वीर भोग्या वसुन्धरा भी यहाँ
वीर रूप से काप गया क्षनमें समन्दर वहाँ।
मान मनौत मानी माने
धूर्त कपटी धोखेबाज झूठा तो झूठा जाने।
हर काल का बताते हाल
समन्दर रूप राशि डूब मरने सब बेहाल।
याचना से कभी नहीं बना काम
युद्ध सागर में डुबोया कुल कर अभिमान।
समन्दर में मोती ढूढ़ते सभी
मोती महल वासी भी  न पाय सुख सभी।
जल बिच मिन पियासा रे
जग समन्दर से पिपासु तृप्त हो जाता रे।
कर्मधर्मश्रधाश्रम साथी
कर मजबूत विश्वास चड़े समन्दर हाथी।
हो जाय पार जग सागर
निर्भय निर्विकार को न डराये समन्दर।

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

जीवन पथ

जीवन ज्योति जले मन आनन्द पले,
सत्य सहारे सारा संसार सार संचय सरे।
भूल भूलैया की दुनिया हम भूले भूले,
झूठ लता नित कपट तरुवर पर फूले फरे।।
शिव शिव जपत लगाये अशिव गले,
हे महाकाल महेश्वर मानव मति मत मरे।
जग कृत सत्कर्म सदा सुमन सु खिले,
अशिव सोच कर्म धर्म मन मर्माहत करे।।
सुन्दर सुखद सुवासित मलयानिल,
बादल बन निज नीर जीवन संचार करे।
धर्म सफलता प्रेम बृक्ष से उन्मीलित,
मानव मन भक्ति भाव आश विश्वास भरे।।
आना जाना रीत जहा दे सिख हमे,
बुरे सपने सा भूल बुरे को कदम आगे धरे।
सत्य शिव सुन्दर जीवन पथ हो,
हर कद मूल मन्त्र कष्ट सूल काटे सिगरे।।

श्री पार्वती पति वन्दे।

रे मन पा सदाआनन्देश्री पार्वती पति वन्दे। जिन्ह मन अजिर वास शंकर तू बन बन्दे।
सत कोटि काम छबि आनन नव अरविन्दे।
भरे नित नवआनन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।1
जुग भुज शोभे सुजन सम विकट भुजंगे।
हर कष्ट हरे हर हरका बोलो हर हर गंगे।
मन्मथ मथ चिर दुःख हर हर सुख भर दे।
हैं सत चित आनन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।2
नन्दी संग बाटे भंग भंग सब विपदा कर दे।
मातु पिता भ्राता वन्धु का पल पल सुख दे।
हेअखिलेश्वर ओंकारेश्वर मन सत्यम दे दे।
हो मिलन ब्रह्मानन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।3
करतल गत हो सब सदगुन तव भक्तन के।
जन मन मधुप रस ले सतत पाद पद्मन के।
प्रकृति पुरुष प्रेम रस डूबतरै भव सागर के।
पावे सब परमानन्दे श्री पार्वती पति वन्दे।4

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

अन्तर

खेल मेल झमेल की इस दुनियाँ
चारों ओर कहानी हैं।
मद मस्त पवन के काम कलेवर
छाती हरदम रवानी हैं।।
अन्तर जग सब भूतों में निहित
अपनी अपनी जुबानी हैं।
पशुपति परिवार अद्भुत विचार
हमने देखी सुनी मानी है।।
रामायण महाभारत युगांतकारी
अन्तर कहते पल पल हैं।
मानव मन मद मोह मोहित महा
अपना पराया हर थल है।।
मौसम सा बदले मिजाज नर नाहर
जैकाल गली मे भारी हैं।
पर पर पड़ते भारी सब ज्ञान झारी
दुनिया अपनों से हारी है।।1।।
फितरत में अन्तर की व्यथा कथा
हम हर कण मे देखते हैं।
मन मयूर नाचे वहाँ आँसू बहाये जहां
करतब सब यहाँ करते है।।
स्थान मान धन धान जन जान सान
सत असत को जानते हैं।
अब तब यहाँ वहाँ घर बाहर शहर में
है अन्तर जो जो मानते हैं।।
मन माने जहाँ नहीं है अन्तर वहाँ
सादगी को जगत सम्मानते हैं।
ताल तलैया नदी नाला सागर महासागर
बिच भेद लोग पहचानते हैं।।
बैल नंदी का रूप पर स्थान नहीं ले सकता
अच्छी छबि जेहन जगाते हैं।
तभी तो अन्तर मिटाने  की खेल जो खेलते
निरंतर अन्तर ही बनाते हैं।।2।।
अंतर है जहाँ में यत्र तत्र सर्वत्र आचारे ।
हो जाता अनचाहे जड़ इसकी व्यवहारे।।
अकाल कुसुम अंतर भेदन  इस संसारे ।
सद शिक्षा दे यहाँ अंतरगत भी सुख सारे।।

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

विश्वास

मैंने दो दो रूप सौ सौ बार देखा है।
अमित रूप यहाँ बार बार पेखा है।।
आस विश्वास जग जीवन रेखा है।   कसमेवादे प्यार बफा कर्म लेखा है।।
घात प्रतिघात आघात व्याघात है।
सर्पेंट सुथरा घात विश्वासघात है।।
अपनापन बनाना इक संघात है।
आस्तीन साप दो कुल ले जात है।।
रिश्तों का होता कत्ल हर थल है।
तात मात भ्रात वन्धु सखा आस है।।
रिश्ता बना तार तार करना घात है।
चीर हरन जहाँ करते अभिजात है।।
श्री हत होते बनते श्री हर जनाब ।
लूटते ही लूट जाते टूट जाते शाब।।
गिर नजर  से गये कर काम खराब।
हुवे हैं दोस्त शराब शबाब व कबाब।।
नियत खोट कपट जेहन होता कैसे।
विष रस भरा कनक घट होता जैसे।।
खा जाये धोखा बड़े बड़े जब इनसे। 
तो बचे कैसे घिरे माया मोह मद से।।

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

हनुमान वन्दना

रामदूत अंजनि सपूत इष्ट देव महावीर।
पवनपूत केसरीसूत हे गुनागार सतवीर।।
बल बुध्दि विद्या धाम कंचन वरन शरीर।
कुल कष्टनिवारक मंगलकारक सुधीर।।
मान दायक धर्मात्मन तू प्रेमाब्ध हनुमान।
रामबल्लभ अभिष्ट दायक देते धनधान।।  सतयुग द्वापर त्रेता कलि युगे जन जान।
अरि मर्दन मित वर्धन प्रहार मुष्टि प्रमान।।
हे हित मित जग दुःख भंजन आर्त सखा।
कर कृपा नित नव नव वर वरदान लखा।।
हे बज्र तनु गदा धारी असुरन बल मखा।
मार मार धर धर झट कर घात जो रखा।।
महाबल दशानन दर्पहा कृपाधाम किंकर।
संजीवनी सा जीवन रक्षक कारक दुष्कर।।
हे मेरे अजीज करु पद्म पाद वन्दन सत्वर।
हर हर हार हरदम इस टूवर किंकर कर ।।

अवसर

देता रब सब समान सबको,
अवसर दान मिला हमको।
दिन-रात सुबह-शाम हरको,
तप-ताप जप-जाप जगको।।
देखा ईश रूप जग कन कन,
पवन उनचास चले सनसन।
रवि-चन्द्र कान्ति मिले कनकन,
अकूत अर्जन का साधन तन।।
अनगिनत पर भारी अंग अंग,
श्रम साध्य है यहाँ सब रंग।
सर्वांग कर्म पाये संसार संग,
तंग विचार करे नित नव जंग।।
करते कलरव पाते अनुदान,
कुदरत रत सत गाते गान।
आलस्य छोड़ जीतो जहान,
हर अवसर करे तब गुनगान।।
अवसर चुके डोगरी नाचे ताल बेताल,
बिन अवसर वारिश लावे काल पेकाल।
चीटी चिड़िया चुग्गा चुने न हो बेहाल,
क्षण क्षण कण कण को चुन हो भुवाल।।