रविवार, 18 जनवरी 2015

अति अनुरागी

सब जगह एकसी न सही पर अनूठी होती।
सागर गागर रेगिस्तान मैदान सबमें मोती।
अति अनुरागी खोज लेते हैं अंधेरेमें जोती।
पिपासु जिज्ञासु की आस आस नहीं खोती।
अति अनुरागी पा जाते हैं अंधेरे में रोशनी।
एक बूँद गुनकारी जो दुःख दाघ विमोचनी।
चिंगारी जू फैलाये मान बन जहाँमें माननी।
जगाती जगमगाती भाग बना बड़ भागिनी।
अति अनुरागी दोजख़ दुःख दाह लीन हो।
ज़न्नत सा सँवारते बनाते रचाते स्थान हो।
तज सहज कटुता मृदुता लाते कामार हो। सिंधु थाह ले वीर चीर फाड़ दे पहाड़ हो।
ऐसी जो तमन्ना सबमें तो न बुरा काम हो।
शत्रु न उठाय नज़र जब एक आवाज हो।
अति अनुरागी देशहित त्यागे सर्वस्य हो।
परहित होते ही हो जाय स्वहित काम हो।
इंद्रा सा न हो लोभी कामी अति अनुरागी। 
राम-भरत अनुरागी राज पाठ सब त्यागी।
बेड़ा गर्त हो जाने से पर्वू ही होजा विरागी।
तपी शिव से सीखे होना अनुरागी-विरागी।
अति अनुराग सिखावत जगावत पढ़ावत।
मिलावत सच्चा सुख प्रेम  रंग मा डूबावत।
न्यौछावर स्व पर पर करा त्यागी बनावत।
स्व से ऐसे माँ भारती की आरती करावत।

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

मनवा मोर मोहे मोहित मान मन मोहनी

प्रकृति पुरुष का है जग अद्भुत खेल।
नित नाच नचावे बात बनावे कर मेल।।
नख शिख शील वदन मयंक मन मोहे।
नियति नियत नर नारी नव नवल नोहे।।
रच बस माया मोह कोह काम लोभ में।
कुदरत करिश्मा कानन कदम कद में।।
अनुराग वाग नर माली सुमन सूल चुन।
मोह गीत दर्द मीत धागा जू उलझ सुन।।
पद्म पद कमल नाल सा कोमल तन-मन।
बिनु घरनी घर भूत का डेरा जू है रे जन।।
नारी नर बनावे घर बसावे सुख शांति से।
कुनारी काम कोह रत नसावे नवास से।।
मनवा मोर मोहे मोहित मान  मन मोहनी।
मधुर मधुर मित मिलन मम मदन मोरनी।।
सेविका स्वामिनी सखा सच सदा शेरनी।
सहज सुकुमारी सदा सत सत सौदामिनी।।
  

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

श्रमेव जयते

परदे में सारा जहां सोहता है सदा।
बेपरदा भी निभाते नियम कायदा।।
जाओ जहां में जहाँ बन रहो मुदा।
लोक मानस मानस बसाओ सदा।।1।।
जूनून जगा मन उसमे बसा सतत।
लेबर इज विक्ट्री मन भृंग होवे रत।।
सूर्य चन्द्र सा करे स्वकर्म अनवरत।
पथ शूल फूल तप तप में जो तपत।।2।।
असत रत होत नत सत्यमेव जयते।
बिकल कल कल ले हो  नम नयते।।
जा जा भावे ता ता पावे संग सहृदते।
कोरी कल्पनात मानो श्रमेव जयते ।।3।

बुधवार, 14 जनवरी 2015

रचना

होती है सारी बात साथ कब।
पूछो देखो समझो जानो अब।
कैसे किसे कहाँ क्या कहू तब।
रचना अद्भुत कल्याणी सब।।1।।
मात-पिता पोषित पालित हम।
अचर सचर चर सब हम सम।
सादर सत चित आनंद वन्दन।
रचना कण कण केशर चन्दन।।2।।
नहीं हंस नर नीर क्षीर विवेकी।
नहीं नाहर नर नरेन्द्र मामेकी।
तमसावृत हटा हो आलोकित।
रचना सूर तम हार विमोचित ।।3।।
मम सम सब अन्यतम हैजानो।
अनूठा अनुपम हर कृति मानो।
उपयोगी बन उपासीन  सबके।
रचना प्रेम रमन रमा रे झटके।।4।।

रविवार, 11 जनवरी 2015

स्वामी विवेकानंद नरेन्द्र नाथ दत्त

स्वाभिमानी देशप्रेमी युवा नरेन्द्र नाथ दत्त।
वाकपटु भारतीय नव जागरण के अग्रदूत।
मीनक महान देदीप्यमान शशांक सदृश्य।
विधु सा प्रगटे बन माँ भुवनेश्वरी के सपूत।
वेगवान हिन्दू भारत भाल पे गौरव तिलक।
काम को लजा हर मन से भगाये भय भूत।
आनन आफ़ताब से अमेरिकी चकाचौध।
नयन विशाल देखे सफलआयाम नित नूत।
दया सागर सागर पार लहराये नव परचम।
नर नाहर थे विश्वनाथ जनक के प्रिय पूत।
दर दर दूर देश तक शाश्वत सत्य वाहक।
नाथ नाथ की खोज त्यागे कामना अकूत।
दत्त आनन्द देने को पाने से माने माकूल।
जन मान नव चेतन हित पहने केशर सूत।
मन्त्र कठोपनिषद का बना जीवन आधार।
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत छूत।
अराइज अवेक एंड स्टाप नाट अन्टिल।
द गोल इज रिचड बोले अंग्रेजी में खूब।
उठो जागो और तब तक ना रुको तुम।
जब तक लक्ष्य ना पकड़ो अपना मजबूत।

जग जग जाग जाग जन जाना।

पग पग पाहन पीयूष पान पाते।
नित नेम नियम नम हो निभाते।।
जग जगत सुत मान नवल पाते।
बिसतंतु बन मानस हंस लुभाते।।
पग पग जरत रहत करम साना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।1।।
आस पे विश्वास नास हो जाता।
विश्वास डोर तोड़ सुख को पाता।।
सच सच ही है जो जग में भाता ।
तोड़ दे जग सदा असत से नाता।।
पाहन पय बना कर्मरती सुहाना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।2।।
देख दुःख दूसरे बिसरो न भाई।
आती काम काम की कर कमाई।।
अमल धवल हिम ने गाथा गाई।
पर हित रत पाते नित ही मिताई।।
पीयूष बन दे दुखियो को प्राना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।3।।
शोषक-तोषक वृत्ति बन आचरन।
पूजती पूजाती नित नव विधानन।।
कल्पनातीत दुःख सुख देवे धन।
मान मनीषी ले लेते ये माने मन ।।
पान पाते हर थल ले दिल स्थाना।
जग जग जाग जाग जन जाना।।4।।

सोमवार, 5 जनवरी 2015

स्थान

दन्त नख केश सा छूटे मूल सब जाय। मणि माणिक मुक्ता सा छूटे मूल सब पाय ।।दुनिया की ही रीत गीत सी जब हो जाय। तब सब स्थान हर का घर हो जाय ।।