सोमवार, 23 दिसंबर 2013

एक रूपता हो जब

दूर दुर्विचार हो सदाचार प्रछन्न हो !नजर नरक नाक नव निर्माण में रत हो !!
कुत्सित मन मालिन्य मुक्त हो ! परस्पर प्रीति प्रेम पावन पवन प्रतिपल हो !!
पवन पाप ताप से तन रहित हो !मलयानिल सा सदा सत्कर्म रत तन हो !!
परहित दूषित भावना दूषण मुक्त हो !परकाज बाधा जन बधिक सा बध्य हो !!
पथिक को मंजिल कर्म धर्म सुलभ हो !निष्कर्म की कुकामाना कष्ट कंटक हो !!
पर दुःख सुखी का सुख दुःख रूप हो !पर सुख सुखी दुःख दुखी जग वन्दनीय हो !!
सोच सर्व हिताय कर्म का मिलन हो !दम्पत्ती सा कर्म कर्मी एक दूजे में रत हो !!
फल सुलभ श्रमसाध्य मनोनुकूल हो !दृष्टि सोच हाव भाव न पर प्रतिकूल हो !!
सत्कर्म धर्म आचरण न कलंकित हो !मिटे जिसकी भावना पर को मिटाती हो !!
राम राज्य हो अन्धेरपुर नगरी न हो !धर्म न्याय समानता हो विषमता न हो !!
एकरूपता हो जब मन मलिन न हो !धैर्य क्षमा दया करुणा जीवन आधार हो !!
सोच सार्थक निरर्थक बकवास न हो !तब हर थल नाक ,हर जन नाकपति हो !!

रविवार, 22 दिसंबर 2013

आदत

जन जन की लत पाती रहती गत ,
सुघर सुघरी सद्गती दायक मत !
काने खोरे कूबरे है अंगो से बिगरे ,
विरले अयबी भले अनभले  सिगरे !
श्वान पालित अपालित रक्षित अरक्षित ,
पूछ टेड़ी की टेड़ी हो भले यह संरक्षित !
आदत अलग -अलग पहचान बनाती है ,
रवि चन्द्र सा जग,जग जगाती है !
आदत ही है जो इन्सान को इन्सान बनाती है ,
लत डाल लिया जो जैसा उसे वैसा बनाती है !
विविध अभिधान आदत से आदती पाते है ,
ईमानदार बेईमान सहिष्णु असहिष्णु होते है !
आदत स्थायी है अस्थायी है बनती है बिगडती है ,
सुधरती है सुधारती है स्वयं ही स्वभाव बनाती है !
स्वभाव से सुन्दर अभाव दूर करे सबका ,
बिगाड़  दे बना काम जब स्वभाव हो कड़का !
आहार बिहार मानो शक्तिवर्धक है आदत का ,
संगति संगीत गीत झलकाती रंग दंग आदत का !
आदत और वाणी आधार स्तम्भ है ,
पाने गवाने बनाने बिगाड़ने की कसौटी  है !
पाते पान प्रतिपल प्रसाद प्रवीण आदती ,
खाते लात लत से सुधारे नहीं है जो लती !
ताकत प्रमाद प्रभुता का गली का शेर है बनाती ,
इनके मुक्त होते ही इनको रक्त का आँसू रुलाती !
आनन्द नन्द नन्द नन्दन का क्रंदन कारक कंस ,
आदत के वशीभूत गया,दिया जब अगनित दंस !
आज भी विभिन्न आदती झेलते है कष्ट ,
नहीं तैयार करने को अपनी आदत को नष्ट !
समय पर चेत रे जन चेत ,
नहीं तो हो ही जाओगे खेत !
नशा नाश है हर पल आ रहा पास है ,
ताश आश पाश सा जकड सर्वनाश है !
जैसे भी कैसे भी इनसे ले लो निजात ,
होगा भविष्य तुम्हारा नहीं खाओगे मात !
आदत तो अपने आप बनायी- बिनासायी जाती है ,
आदत इन्सान जानवर में तो न्यारी न्यारे होती है !
आदत से सुयोधन बन गया दुर्योधन है ,
करता कराता नाश धन मान मन है !
आदत रवि चन्द्र की कर्म धर्म को जताती है ,
गीता भी तो कर्म धर्म फर्ज पर मरना सिखाती है !
आदत मानव को दानव मानव देव बनाती है ,
बैल को नंदी बना शिव शिवा संग पुजाती है !
मान अपमान की जननी का करे सम्मान ,
साद कर्म रत साद आदत से ही बने महान !

अमिय - गरल सु जग - जीवन


अमिय रूप भव- कूप सदा, बढायें महा मान !
जीवन तो नश्वर यहाँ ,अमर होय यश- गान !!१!!
कथनी- करनी जब एकै ,सुदृढ़ यश- भवन नीव !
अजर-अमर हो कर्म सब ,राम धाम वह जीव !!२!!
जगत- हलाहल में रहत ,करत धरत शुभ काम !
जगत- अमिय उस हित बनत ,नित नव रचना नाम !!३!!
जग- जहर वन्दनीय नित ,रत इस हित सब लोग !
मादकता में बहक चित ,सत सत भोगे भोग !!४!!
श्वेत- श्याम जु अमिय - गरल ,करत विलग ही काम !
सुबह सुखद जीवन करत ,चलत सकल दुःख शाम !!५!!
अमिय- गरल सु जग- जीवन ,कर्म रत है हर पल !
पय व रम सा सुखद- दुखद ,दे रहा सब को फल !!६!!

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

सिय राम मय सब जग जानी !

सिय राम मय सब जग जानी !
सुन्दर तथ्य तुलसी ज़ुबानी !!
राम से राम सिया से सिया !
इस धरा पर इनसा कथ जिया !!
किसको माने राम किसको सिया !
सारे कुए में है जब भांग दे दिया !!
नकारात्मक आकंठ दिखे प्रेम पिया !
सकारात्मक हेतु दिखाना है दिया !!
मर्द को राम नारी को कैसे माने सिया !
पर्दा बेपर्दा आदर्श-मर्यादा को है पिया !!
दीप दिखा दिनकर को खुद बदा लिया !
आस्तिक नास्तिक सा है काम किया !!
आस्था तोड़ सात्विक जीवन है जिया !
कबीर है जहा राम को भरतार किया !!
रैदास मीरा सूर आदि ने है गीत दिया !
शान्ताकार संसार को वाणी दे दिया !!
ईश्वर की अद्भुत रचना मानव रूप लिया !
देव-दनुज इस रूप हेतु तरसाते है जिया !!
देव भूमि तपो भूमि भूसुर जप जाग किया !
ज्ञाताज्ञात मनीषी देशहित लगाए है जिया !!
भारत-भारती सुसंस्कृत संस्कार है सिया !
धर्म पालन हेतु रामने एक पत्नी व्रत लिया !!
मोहन मन मोर, मन्मथ मान मर्दन किया !
संतो ने यहाँ परमहंस बन परम सुख लिया !!
पागल बेवकूफ कहलाने वाले सत्कर्मी है धरा !
पानी बिजली कोयला चीनी खेल चारा नहीं चरा !!
नमन नित नव नव रूप-नाम धारी राम सिया को !
त्यागी योगी यती तपी धारे सदा ही जो धर्म को !!
मानव -धर्म ही धर्म मानवता से प्रेम कर्म जहा !
दूषित मानसिकता निश्चित भस्मीभूत वहा !!
सिय राम मय बन जायेगे सब बाल-बाला !
करे प्रणाम सब सदा त्याग सब जंजाला !!

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

परिदृश्य

आज कल का परिदृश्य दिव्य दृश्य देखे ज़रा !
जिसमे सारे जहां से अच्छा का कृत्य है भरा !
तड़पते एक तरफ रोजी रोटी के लिए है लोग !
दूसरी तरफ मद मस्त भोग रहे है बहुत भोग !!
इस रंग बदलती दुनिया में सब रंग बदलते है !
दंग बदलते है चोला चंग चवर चंद बदलते है !
रंग बदलते इन्सान से गिरगिट मात खाते है !
मूल प्रवृत्ति से हट अब जीव जंतु भी जाते है !!
गुलमोहर-मन पलक झपकते लपकने को आतुर !
हीरा मोती चुगने वाले रहते है हर पल भयातुर !
सुख की चिंता केवल अपनी दूजा भले बदहाल !
नामी गिरामी काम- पिपासु से बदनाम देश काल !!
संत असंत पत्रकार जस्टीक नेता एकाकार !
बृद्ध युवा बालक पालक करे देश को शर्मसार !
कार्य कारण भौतिक विकास अर्थ की सुलभता !
आम को काम नहीं ख़ास काम वश है प्रभुता !!
भौतिकता-मशीन ख़ास के लिए बोरिंग करे !
जिससे फट रहे है नित काम के बड़े फव्वारे !
कामी लोभी लालची चाट रहे चासनी सा माल !
उच्च पदस्त माननीय करे यहाँ दानवी कमाल !!
जू रेगना बंद कर दी कामियो कलुषितो के कान !
शोषित हो आम नित जह तह बचे देश का मान !
बदसलूकी दोहरे रवैया-चरित्र करते है शर्मसार !
मार डाल जमीर को कृतदास बनाया है इन्हे मार !!
तिरंगी पट्टी केशरिया चुनरी धर करे वारे-न्यारे !
पद-मान आक्षेप-विक्षेप जनक जोर रखते सारे !
अमोघ लेगे पर कर्ण सा नहीं देगे कवच -खाल !
दुर्योधन सा सब खो कर चाहते होना माला- माल !!

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

स्वप्न

स्वर्णिम भविष्य के लिए ,मानवता विकास के लिए !
पंक में पंकज के लिए ,स्व व पर के लिए सबके लिए !!
स्वप्न होना स्वप्न आना ,स्वप्न पाना स्वप्न की ओर बदना !
स्वप्न बना कर लीन हो जाना ,स्वप्न बुनस्वप्न साकार करना !!
सकारात्मक प्रवृत्ति विचार विचारात्मक ,
एकात्म भाव से रत हो हो रचनात्मक !
त्यागो सपने जो नकारात्मक ,
सोचो शून्य में शून्य ही होता भाव विनासात्मक !!
सकल शास्त्र पारांगत ,दूषित दुर्निवार दानवता ,
सकल कला धारक ,पोषित प्राणपण कलुषता !
पौलस्त्य ने कलंकित की मानवता ,
राघवेन्द्र ने फिर भी दे दिया शुभता !!
स्वप्न एक दो नहीं सैकड़ो आते और जाते है ,
कितनो की कड़ी को कभी नहीं पकड़ पाते है !
रात के सपनों को तो हम प्रायः भूल जाते है ,
दिन के सपनों पर  तपित हो महल बनाते है !!
सोते सपने स्वर्णिम समय सजोये सवारते सुलाते है !
जगे जागते जग जगाते जोर जोर जेहन जलाते है !!
दो दो हाथ करने पर भी बा मुश्किल यथार्थ हो पाते है !
क्योकि दो-चार सौ में एक दो सपने ही सच हो पाते है !!
सार्थक सकारात्मक सपनों की सीदी विरले चढ़ पाते है !
निरर्थक नकारात्मक के पीछे सुख चैन छोड़ भागते है !!
मृग मरीचिका है नकारात्मक सपने जिसे नहीं पाते है !
प्रतिबिम्ब प्रतिपल सकारात्मक सपने सोच से सुलझ जाते है !!
दुस्वप्न स्वप्न नहीं वैसे ,कुकर्मी मानव नहीं जैसे ,
भाव भवन भाव शून्य हो ताकता निर्निमेष हो कैसे !
विखर जाय मानव का सब स्वर्णिम स्वप्न ही तैसे ,
मिट जाय सारे स्वप्न ,जन भरा हो जब मय से !!
स्वप्न न देखना बुरा या अच्छा ,प्रश्न गंभीर है ,
सुस्वप्न पर बदा कदम पूर्णता की सोच सराहनीय है !
स्वप्न देखना निश्चय ही जन जन के लिए समीचीन है ,
मानवता को लवरेज मानवता से किया जिसने वो माननीय है !!
होगा होगा पूरन काम वही जिसके हौसले बुलन्द है !
स्वप्न करेगे वही इस धरा का पूरा जो नहीं स्वच्छंद है !!

रविवार, 15 दिसंबर 2013

परीक्षा

जीवन एक परीक्षा है ,
हर मोड़ पे सम्हलना ,नहीँ उलझना यह इसकी इक दीक्षा है !
चंदन सा स्वभाव, न दे अभाव ,
घिसे बढ़े ,माथे चढ़े ,रखे समभाव !
जातक जात जतन जननी जनन प्रभु ईच्छा है ,
प्रेमाम्बु पय पान प्रारम्भ मान मानव मानव ईच्छा है !
जनक जननी जन्म भूमि ,कार्य कारण कर्मभूमि !!
मागते हक़ हरदम हमसे ,हमसे हो हमारे हो !
फर्ज हमारा है इनके लिए कि तन-मन हमारा इनमे लगा हो !
भ्रम -जाल में उलझाने को बहुपथगामी यायावर ईच्छा !
कदम कदम पर चौराहों सा ,बाहे फैलाएं खड़ी परीक्षा !
पर ईच्छा से संचालित नियति नटी नित नाच नचाती !
है पल सुलझो नहीं तो उलझो की है यह शोर मचाती !
सिख सिखाती गुरुवर सा ,माता सा यह पालन करती !
तरुवर-सरवर सम्बन्धी दे ,सेवा करती सतत धरती !
धरती की प्रीति परीक्षा पेखो तपती तड़पती तनय ताप से !
इम्तिहान के हर दौर से गुजर करे इन्तहां मोहब्बत आप से !
शिक्षा शिक्षण संस्थान से ,सेवा सर्वदा शबरी अबला से !
मान ,स्वमन मान मर्दन से, सिख नित निज जीवन से !
परीक्षा तो जीवन में देना ही पड़ता है !
कभी-कभी अपने आप से लड़ना भी पड़ता है !
बिन मागें मिल जाता कब !
श्रम साधना कर्म आराधना हो जब !
बिनु श्रम ,कर्म रहित पोषित करे पाप !
बिनसे बिनासाए सब मूल से अपने आप !
परिवार घर समाज गाव ,फैलाए जब अपना पाँव !
चारो चारो ओर से लेते समरथ भर परख ठाव ठाव !
परखते पारखी पर चखते चखना सा चतुर !
शुद्ध सम्पन्न स्वर्ण सा जन होता न आतुर !
कर बुलन्द खुद को तैयार रहो !
भले ही जीवन क्यों न परीक्षा हो !
चरित्र परचम सा फहरे जिस जन का !
कीर्ति पराग सा सुवासित उस सुजन का !
हर परीक्षा उसकी स्व ईच्छा सा देती रहेगी फल !
श्रम साधना चरित्र आराधना जिसका जीवन जल !!