बुधवार, 18 दिसंबर 2013

परिदृश्य

आज कल का परिदृश्य दिव्य दृश्य देखे ज़रा !
जिसमे सारे जहां से अच्छा का कृत्य है भरा !
तड़पते एक तरफ रोजी रोटी के लिए है लोग !
दूसरी तरफ मद मस्त भोग रहे है बहुत भोग !!
इस रंग बदलती दुनिया में सब रंग बदलते है !
दंग बदलते है चोला चंग चवर चंद बदलते है !
रंग बदलते इन्सान से गिरगिट मात खाते है !
मूल प्रवृत्ति से हट अब जीव जंतु भी जाते है !!
गुलमोहर-मन पलक झपकते लपकने को आतुर !
हीरा मोती चुगने वाले रहते है हर पल भयातुर !
सुख की चिंता केवल अपनी दूजा भले बदहाल !
नामी गिरामी काम- पिपासु से बदनाम देश काल !!
संत असंत पत्रकार जस्टीक नेता एकाकार !
बृद्ध युवा बालक पालक करे देश को शर्मसार !
कार्य कारण भौतिक विकास अर्थ की सुलभता !
आम को काम नहीं ख़ास काम वश है प्रभुता !!
भौतिकता-मशीन ख़ास के लिए बोरिंग करे !
जिससे फट रहे है नित काम के बड़े फव्वारे !
कामी लोभी लालची चाट रहे चासनी सा माल !
उच्च पदस्त माननीय करे यहाँ दानवी कमाल !!
जू रेगना बंद कर दी कामियो कलुषितो के कान !
शोषित हो आम नित जह तह बचे देश का मान !
बदसलूकी दोहरे रवैया-चरित्र करते है शर्मसार !
मार डाल जमीर को कृतदास बनाया है इन्हे मार !!
तिरंगी पट्टी केशरिया चुनरी धर करे वारे-न्यारे !
पद-मान आक्षेप-विक्षेप जनक जोर रखते सारे !
अमोघ लेगे पर कर्ण सा नहीं देगे कवच -खाल !
दुर्योधन सा सब खो कर चाहते होना माला- माल !!

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

स्वप्न

स्वर्णिम भविष्य के लिए ,मानवता विकास के लिए !
पंक में पंकज के लिए ,स्व व पर के लिए सबके लिए !!
स्वप्न होना स्वप्न आना ,स्वप्न पाना स्वप्न की ओर बदना !
स्वप्न बना कर लीन हो जाना ,स्वप्न बुनस्वप्न साकार करना !!
सकारात्मक प्रवृत्ति विचार विचारात्मक ,
एकात्म भाव से रत हो हो रचनात्मक !
त्यागो सपने जो नकारात्मक ,
सोचो शून्य में शून्य ही होता भाव विनासात्मक !!
सकल शास्त्र पारांगत ,दूषित दुर्निवार दानवता ,
सकल कला धारक ,पोषित प्राणपण कलुषता !
पौलस्त्य ने कलंकित की मानवता ,
राघवेन्द्र ने फिर भी दे दिया शुभता !!
स्वप्न एक दो नहीं सैकड़ो आते और जाते है ,
कितनो की कड़ी को कभी नहीं पकड़ पाते है !
रात के सपनों को तो हम प्रायः भूल जाते है ,
दिन के सपनों पर  तपित हो महल बनाते है !!
सोते सपने स्वर्णिम समय सजोये सवारते सुलाते है !
जगे जागते जग जगाते जोर जोर जेहन जलाते है !!
दो दो हाथ करने पर भी बा मुश्किल यथार्थ हो पाते है !
क्योकि दो-चार सौ में एक दो सपने ही सच हो पाते है !!
सार्थक सकारात्मक सपनों की सीदी विरले चढ़ पाते है !
निरर्थक नकारात्मक के पीछे सुख चैन छोड़ भागते है !!
मृग मरीचिका है नकारात्मक सपने जिसे नहीं पाते है !
प्रतिबिम्ब प्रतिपल सकारात्मक सपने सोच से सुलझ जाते है !!
दुस्वप्न स्वप्न नहीं वैसे ,कुकर्मी मानव नहीं जैसे ,
भाव भवन भाव शून्य हो ताकता निर्निमेष हो कैसे !
विखर जाय मानव का सब स्वर्णिम स्वप्न ही तैसे ,
मिट जाय सारे स्वप्न ,जन भरा हो जब मय से !!
स्वप्न न देखना बुरा या अच्छा ,प्रश्न गंभीर है ,
सुस्वप्न पर बदा कदम पूर्णता की सोच सराहनीय है !
स्वप्न देखना निश्चय ही जन जन के लिए समीचीन है ,
मानवता को लवरेज मानवता से किया जिसने वो माननीय है !!
होगा होगा पूरन काम वही जिसके हौसले बुलन्द है !
स्वप्न करेगे वही इस धरा का पूरा जो नहीं स्वच्छंद है !!

रविवार, 15 दिसंबर 2013

परीक्षा

जीवन एक परीक्षा है ,
हर मोड़ पे सम्हलना ,नहीँ उलझना यह इसकी इक दीक्षा है !
चंदन सा स्वभाव, न दे अभाव ,
घिसे बढ़े ,माथे चढ़े ,रखे समभाव !
जातक जात जतन जननी जनन प्रभु ईच्छा है ,
प्रेमाम्बु पय पान प्रारम्भ मान मानव मानव ईच्छा है !
जनक जननी जन्म भूमि ,कार्य कारण कर्मभूमि !!
मागते हक़ हरदम हमसे ,हमसे हो हमारे हो !
फर्ज हमारा है इनके लिए कि तन-मन हमारा इनमे लगा हो !
भ्रम -जाल में उलझाने को बहुपथगामी यायावर ईच्छा !
कदम कदम पर चौराहों सा ,बाहे फैलाएं खड़ी परीक्षा !
पर ईच्छा से संचालित नियति नटी नित नाच नचाती !
है पल सुलझो नहीं तो उलझो की है यह शोर मचाती !
सिख सिखाती गुरुवर सा ,माता सा यह पालन करती !
तरुवर-सरवर सम्बन्धी दे ,सेवा करती सतत धरती !
धरती की प्रीति परीक्षा पेखो तपती तड़पती तनय ताप से !
इम्तिहान के हर दौर से गुजर करे इन्तहां मोहब्बत आप से !
शिक्षा शिक्षण संस्थान से ,सेवा सर्वदा शबरी अबला से !
मान ,स्वमन मान मर्दन से, सिख नित निज जीवन से !
परीक्षा तो जीवन में देना ही पड़ता है !
कभी-कभी अपने आप से लड़ना भी पड़ता है !
बिन मागें मिल जाता कब !
श्रम साधना कर्म आराधना हो जब !
बिनु श्रम ,कर्म रहित पोषित करे पाप !
बिनसे बिनासाए सब मूल से अपने आप !
परिवार घर समाज गाव ,फैलाए जब अपना पाँव !
चारो चारो ओर से लेते समरथ भर परख ठाव ठाव !
परखते पारखी पर चखते चखना सा चतुर !
शुद्ध सम्पन्न स्वर्ण सा जन होता न आतुर !
कर बुलन्द खुद को तैयार रहो !
भले ही जीवन क्यों न परीक्षा हो !
चरित्र परचम सा फहरे जिस जन का !
कीर्ति पराग सा सुवासित उस सुजन का !
हर परीक्षा उसकी स्व ईच्छा सा देती रहेगी फल !
श्रम साधना चरित्र आराधना जिसका जीवन जल !! 

बुधवार, 20 नवंबर 2013

साथ

कौन करता सहायता ,अप्रत्याशित हर समय !
अपने पराये से दुर ,इंसानियत का विस्मय !!१!!
सु कर्म रत सु सोच पाता ,क्रिटिकल सचुएशन जब !
आता मानव मसीहा ,अपना बनाकर तब !!२!!
कहा कौन किसका नहीं ,पा पाता  है साथ !
कु करम करमी से भाग ,खिच ले नित निज हाथ !!३!!
समय समरथ दे पर हित ,स्वहित रत जन तल्लीन !
करवट ले जब तब यही ,करे सब कुछ मलीन !!४!!
अपना जब अपना होय, पर जन का का काम !
पराया ही अपना हो , तब अपना क्या नाम !!५!!
जब आपण आपण न हो ,आन आपण का होइ !
जब आन आपण हो जाय ,आपण आन का होइ !!६ !!
जहा सगो से मिले नित ,गम की नव सौगात !
आज कल कौन तैयार ,देने के लिए साथ !!७!!

शनिवार, 16 नवंबर 2013

बराबरी

अकल्पनीय अकथनीय कह सकते अकरणीय अशोभनीय है !
कथा सब जाति धर्म सम्प्रदाय पंथ वर्ण भेद की विचारणीय है !!
नेता अभिनेता नेत्री अभिनेत्री की विविध विपदा अवर्णनीय है !
सार भस्म सा समाज में किसी भी प्रकार बराबरी अभस्मीय है !!१!!
ताप त्रय विमोचन त्रिलोकी त्रास तारन तप्त आभा से विलग है !
क्षेत्र जाति भाषा धर्म रूप रंग वेश भूषा भजन भाजन से भुवन है !!
भारत भूमि भूषित भुवन भर भायप भगति भावना से भरत है !
राम रावण पांडव कौरव कृष्ण कंस- कथा जन जन से कहत है !!२!!
भीष्म भीम बली शकुनी सुदोदन छली कृप कर्ण महारथी है !
महाभारत पुराण गीता ज्ञान में संसार सार तारक सारथी है !!
जूथपति जाम्बवान बज्रांग पादशक्ति की किससे बराबरी है !
राम भ्राता भरत से कुरुवीरो कुरुवंशियो से कसमकस परी है !!३!!
बराबरी नित की नव नव कर ही ब्रह्मर्षि से राजर्षि ने करी है !
फिर भी करम धरम काम धाम हरदम हरी नाम से ही हरी है !!
प्राचीन नवीन मोटा महीन महिमा माया मद मोह कोह भरी है !
राग रोग भाग भोग भुवन भर भर रही नित नव नव बराबरी है !!४!!
काल कलि कल का का केहु करत करामती कु को कामी करी है !
कुकरी सुकरी भाग भोग जाग जोग जग जगाये जतन  जरी  है !!
राकपा माकपा सपा बसपा अपा भाजपा कांग्रेस से क्षत्रप परी है !
लोक तंत्र को लूट तंत्र बनाने में लगी लगन सबमे अब बराबरी है !!५!!

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

हिरनी

मन मचले तन डोले कथा हिरनी का अद्भुत तथ्य खोले !
सब सो गए शाम वनवासी कुंजो से आती ध्वनि बोले !!
बिपदा पुकारे काल हाथ पसारे सहारे को सहारा डाले !
जाग उठा वीर भुज भुजदण्ड ले झपटा काल पर काले !!१!!
काले को देख हतप्रद शिकार सुखप्रद काले आखे फारे !
तन मन चाहत बाल बाल  खाने की हिरन  पकड़ डारे !!
हिरनी छाया सी पुत्र की निकुंज से सब  देखे आखे फारे !
देखती दुखित दुखप्रद दृश्य दिल दुलारे दुलारे दर दुखारे !!२!!
हिम्मत न हार माँ आयी तो काले के हो रहे थे वारे न्यारे !
एक के साथ एक फ्री है  मन मयूर नाच नाच लड्डू फोरे !!
हिरनी लाल को देख धीरज खो रही हिम्मत कर कर जोरे !
धारा प्रवाह हिरनी आँसू से काले  मन अतीत में जा डोरे !!३!!
माता पिता हीन टूअर को याद आये स्वयं के काले दिन !
मान शावक स्वयं सोच डूबा हो गया उसका मन मलिन !!
माता पिता की साया को किसी पापी ने ले लिया था छिन !
रोया गिरा सरसा तरसा अपने पुराने दिनों को गिन गिन !! ४!!
पल पल पलटे परिदृश्य प्रकृति पकाती पूरी पकी पीर !
पल में मासा पल में तोला कभी खुशी कभी गम चीर !!
का करू का कहू कहते कंठ हिरनी आँसू से हो अधीर !
माता लालसा हिरनी पूरी दे सिघ आखों से हो गंभीर !!५!!
पर दुःख कातर संवेदनाहीन बन गया अब संवेदनशील !
 लिया प्रण जीवन का बह उठी नयन गंगा भर उठे झील !!
माँ बेटे सह हरषित देती आशीर्वाद मत करो मन मलीन !
झूम उठा सारा परिदृश्य संगम सा जहा गम हो जाते दीन !!६!!

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

हम कदम

एक कथा जय पराजय की सुख शान्ति तृप्ति तलाश की !
देवी दासी दायित्वों दुर्निवार दुस्वारियो दुखद दुर्विकल्पो की !!
 पति पत्नि सखा सखी स्वामी स्वामिनी सेवक सेविका की !
सोच विचार संतुष्टि त्याग तपस्या प्रेम घृणा लगाव इश्क की !!१!!
बिना विचारे पथ त्यागे नासमझदारी को समझदारी समझ की !
पर विकार विकार स्व विकार स्वीकार से स्वयं श्रेष्ट मानने की !!
हम कदम राही को हम सफ़र बना लेने की लगन पर ललकने की !
अपना सब स्वेच्छया समर्पण कर पर पर प्रत्यारोप लगाने की !!२!!
स्वयं ही विवेक खो सत असत से दूर हो गलत को सही मानने की !
स्व अनुकूल जब तक सब रहे तब तक अपने आप पर इटलाने की !!
धोखा को विश्वास स्नेह ईमान समझ उस पर इतराते रहने की !
सब कुछ दिन सा साफ़ होने पर स्वं की करतूती पर पछताने की !!३!!
हो रहा ऐसा ही है आज कल हर शहर हर गली गली हर स्थली !
इश्क मुश्क में नहीं समझते फेयर अनफेयर नव भौरे नव कली !!
ये तो एवरीथिंग फेयर एवरीवेयर मान बैठे माने बुजर्गो को ठली !
पर आदतन भौरे बदलेगे ही कली की बात जब इन पर आ चली !!४!!
तब कथा प्रेम का रूप छोड़ बलात्कार व्यविचार देह शोषण है बनी !
ऐसी हमने ही नहीं सबने ही है भाति भाति से अनेक कथा है सुनी !!
जज जनता शासन सरकार सब सोचे ऐसो की जड़ कैसे है काटनी !
लालच लोभ मोह में गिर गिर गिरना है तो कैसे कोई इनका धनी !!५!!
कहते हम हम कदम को रहने दो, हम कदम नहीं चाहते देवी दासी !
देवी नैसर्गिक अधिकारों से परे इन्हें दिखती मुरझाये पुष्प सा बासी !!
दासी का अधिकार छीन जाए अधिकारहीन जीवन को कैसे सह जासी  !
पति पत्नि सेवक स्वामी सखा एक दूसरे के यह इन्हें है कभी सुहासी !!६!!