रविवार, 27 अक्तूबर 2013

हिरनी

मन मचले तन डोले कथा हिरनी का अद्भुत तथ्य खोले !
सब सो गए शाम वनवासी कुंजो से आती ध्वनि बोले !!
बिपदा पुकारे काल हाथ पसारे सहारे को सहारा डाले !
जाग उठा वीर भुज भुजदण्ड ले झपटा काल पर काले !!१!!
काले को देख हतप्रद शिकार सुखप्रद काले आखे फारे !
तन मन चाहत बाल बाल  खाने की हिरन  पकड़ डारे !!
हिरनी छाया सी पुत्र की निकुंज से सब  देखे आखे फारे !
देखती दुखित दुखप्रद दृश्य दिल दुलारे दुलारे दर दुखारे !!२!!
हिम्मत न हार माँ आयी तो काले के हो रहे थे वारे न्यारे !
एक के साथ एक फ्री है  मन मयूर नाच नाच लड्डू फोरे !!
हिरनी लाल को देख धीरज खो रही हिम्मत कर कर जोरे !
धारा प्रवाह हिरनी आँसू से काले  मन अतीत में जा डोरे !!३!!
माता पिता हीन टूअर को याद आये स्वयं के काले दिन !
मान शावक स्वयं सोच डूबा हो गया उसका मन मलिन !!
माता पिता की साया को किसी पापी ने ले लिया था छिन !
रोया गिरा सरसा तरसा अपने पुराने दिनों को गिन गिन !! ४!!
पल पल पलटे परिदृश्य प्रकृति पकाती पूरी पकी पीर !
पल में मासा पल में तोला कभी खुशी कभी गम चीर !!
का करू का कहू कहते कंठ हिरनी आँसू से हो अधीर !
माता लालसा हिरनी पूरी दे सिघ आखों से हो गंभीर !!५!!
पर दुःख कातर संवेदनाहीन बन गया अब संवेदनशील !
 लिया प्रण जीवन का बह उठी नयन गंगा भर उठे झील !!
माँ बेटे सह हरषित देती आशीर्वाद मत करो मन मलीन !
झूम उठा सारा परिदृश्य संगम सा जहा गम हो जाते दीन !!६!!

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

हम कदम

एक कथा जय पराजय की सुख शान्ति तृप्ति तलाश की !
देवी दासी दायित्वों दुर्निवार दुस्वारियो दुखद दुर्विकल्पो की !!
 पति पत्नि सखा सखी स्वामी स्वामिनी सेवक सेविका की !
सोच विचार संतुष्टि त्याग तपस्या प्रेम घृणा लगाव इश्क की !!१!!
बिना विचारे पथ त्यागे नासमझदारी को समझदारी समझ की !
पर विकार विकार स्व विकार स्वीकार से स्वयं श्रेष्ट मानने की !!
हम कदम राही को हम सफ़र बना लेने की लगन पर ललकने की !
अपना सब स्वेच्छया समर्पण कर पर पर प्रत्यारोप लगाने की !!२!!
स्वयं ही विवेक खो सत असत से दूर हो गलत को सही मानने की !
स्व अनुकूल जब तक सब रहे तब तक अपने आप पर इटलाने की !!
धोखा को विश्वास स्नेह ईमान समझ उस पर इतराते रहने की !
सब कुछ दिन सा साफ़ होने पर स्वं की करतूती पर पछताने की !!३!!
हो रहा ऐसा ही है आज कल हर शहर हर गली गली हर स्थली !
इश्क मुश्क में नहीं समझते फेयर अनफेयर नव भौरे नव कली !!
ये तो एवरीथिंग फेयर एवरीवेयर मान बैठे माने बुजर्गो को ठली !
पर आदतन भौरे बदलेगे ही कली की बात जब इन पर आ चली !!४!!
तब कथा प्रेम का रूप छोड़ बलात्कार व्यविचार देह शोषण है बनी !
ऐसी हमने ही नहीं सबने ही है भाति भाति से अनेक कथा है सुनी !!
जज जनता शासन सरकार सब सोचे ऐसो की जड़ कैसे है काटनी !
लालच लोभ मोह में गिर गिर गिरना है तो कैसे कोई इनका धनी !!५!!
कहते हम हम कदम को रहने दो, हम कदम नहीं चाहते देवी दासी !
देवी नैसर्गिक अधिकारों से परे इन्हें दिखती मुरझाये पुष्प सा बासी !!
दासी का अधिकार छीन जाए अधिकारहीन जीवन को कैसे सह जासी  !
पति पत्नि सेवक स्वामी सखा एक दूसरे के यह इन्हें है कभी सुहासी !!६!!

सोमवार, 30 सितंबर 2013

सत्कर्मी ही सफलता को बरे

करम पथ सूल सा पथिक दुकूल सा उलझा !
जो जोड़ तोड़ मोड़ मरोड़ काट छाट में मजा !!
दिखे निश्चित सब तरह से सुलझा  सुलझा !
कलि काल प्रकृति सह रचता मजा की सजा !!१!!
दो बात है स्वकर्म रत विरत कर्म पथिक से !
जब सास तब आस लगाए रहे वे प्रकृति से !!
भ्रमजाल सुलझा मत उलझ स्वयं अमूल से !
 न होता अन्याय कभी इस धरा पर प्रकृति से !!२!!
सास आस आधार जीवन का जगती ताल में !
खुशबू बदबू का संज्ञान सास ले लेती पल में !!
डूबते को तिनका सहारा जब सास जेहन में !
डूब कर डूबो गए डूब गए कितने इस जहा में !!३!!
प्रायोजित आयोजित अप्रत्यासित योजना !
सफल थे कालकेतु तपीस कुत्सित योजना !!
केकी कंठ अहि सा निगले नित नव योजना !
नथने में रत कालीनाग सा है प्रकृति योजना !!४!!
केकी कंठी गुमराह करमी को करम पथ से करे !
आन मान प्रतिमान पर जो पग सदा आगे धरे !!
तपी कालनेमी जती रावन पूरन आस को बिफरे !
पर पर कटे खलो के सत्कर्मी ही सफलता को बरे !!५!!

शनिवार, 28 सितंबर 2013

घोड़ा और घास

सबकी कबकी आस सहज सरल जीवन हो पास !
जटिलता त्यागे करे न हम मानवता का ह्रास !!
अनजाने जाने जीवन  हर थल हो बिना त्रास  !
हम न बने कही घोड़ा कही पर न बने कोई घास !!१!!
जाति-वर्ग धर्म -सम्प्रदाय या जो भी हो बाधा !
दधीचि सा त्यागी बन हम दे दे उसको काधा !!
घोड़े सा चर चर चंचल मन करता नित आधा !
जन घास मन घोड़ा छोडो हो जाय सब साधा !!२!!
घोड़े सा है आतुर चरने को मानव मानव घास !
सत्ता शासन शासक की प्रभुता रखते जब पास !!
हो अभय  ये शनि राहू केतु सा लिए मन आस !
पावस पवन मेघ आप बूद से जरते जू जवास !!३!!
कौन है घोड़ा कौन है घास घोड़े घास का विश्वास !
घोडे घास की यारी हो तब तो फैलेगी घास ही घास !!
घास घोड़ा हो जाय जो और हो जाय जब घोड़ा घास  !
तो छोड़ देगा चरना घास घोड़े को यह कैसे विश्वास !!४!!
युग धर्म यही युग कर्म यही युग युग से हैं सब त्रस्त !
तोड़ना ही हो समाधान तब हमें इसमें होना है व्यस्त !!
सब तरफ सुख शान्ति हो हो सभी इस से विश्वस्त  !
जन जन जब जाग जाय तब घासी घोड़े होगे ही पस्त !!५!!

शनिवार, 21 सितंबर 2013

पञ्च दोहे

देखे दूरंगी रेख ,दुनिया दोहरि दौर !
नित पर सुख दुःख ही पेख ,त्यागे खुद निज ठौर !!१!!
काम दुर काम बस भूत ,लगन लगे व्यविचार !
कामाचारी का कूत ,बचा ले सदाचार !!२!!
कब बचेगा सदाचार ,जब सारे है चोर !
हर मन मिटा कदाचार ,हो स्वकर्म ही ठोर !!३!!
चोर गिने गिनाये सब ,पर गनकू भी चोर !
अंग बेअंग सभी अब ,करे इसी पर जोर !!४!!
समय काम धरम चोरी ,जाने सब अधिकार !
सब कुछ हो सहज मोरी ,याद नहीं निज कार !!५!!
         

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

शिकारी और शिकार

सिकवा सिकता सा सदा सोहे स्व स्वपरिवार !
तना तनी से केतु राहू सा बदता है नित रार !!
जब जाय जती जू जतावे जातरू सू सब सार !
तब होते सब कालनेमी सा शिकारी ही शिकार !!१!!
बंद मुठ्ठी से सरक सिकता सिखावे नित ज्ञान !
सिकवा को बना सिकता करे हम सच का भान !!
सरकता नित सिकता जू सब आन बान शान !
नहीं कर पाया कोई शिकारी- शिकार पहचान !!२!!
शिकारी भी हो जाता शिकार बिखर कर तार तार !
छोटे मोटे शिकार पा जब पर मान धन पर करे प्रहार !!
क्षणिक सुख शान्ति ईमान मान बेच जब करे व्यवहार  !
तब बून रहा नित नाश-जाल होने को निज ही शिकार !!३!!
अनाथन के नाथ बन जो करे छल कपट का व्यवहार !
चंड मुंड रक्तबीज सा हो भले होता उसका भी संहार !!
आख वाले अंधे बन करते हैं जब सब मिथ्याचार !
तब कठिन है समझना कौन शिकारी कौन शिकार !!४!!

हे गन नायक

जय जय हे गनेश तू पूजित मातु- महेश ,
सुचिता शुभता वेश जाने जन जनेश !
थारो न्यारो वेश है ज्ञान बुद्धि ज्ञानेश ,
राज रचो राजेश भलो भलाई के रमेश !!१!!
वासरमणि तम हरन हौ आपु विघ्न हरन ,
सुमुख हे एकदसन रमते बन सिन्दूर बदन !
प्यारो रूप गजकरन भाते शुभ सब सदन ,
जगे जागरन जतन जात जरे जोत जरन !!२!!
लम्बोदर विघ्नेश बिनायक हर हर दर्द हे गननायक
 नाश विनाश के नायक सुख शान्ति के तुम दायक !
सुरप्रिय सुन्दर सु लायक सुवासित तेरा है सायक ,
परे पद पद्म पापी पूरन पावे पल पल पायक !!३!!
अब तो आ जा गनराज मेवाती लाल बुलाता है ,
सुन जा हर एक राज जगतसुत राज बताता है !!
करिवर बदन भरो सदन भगत स्वगीत सुनाता है ,
दिखा जा वो अब मार्ग जो जग जमात जगाता है !!४!!