रविवार, 30 दिसंबर 2012

हनुमान वन्दना

जय जय जय हे राम भक्त बजरंग बली!
सदगति दायक कष्टनिवारक फैली है बात गली-गली!!
मनमोहक तन कंचन वरन वामकाध उपनयन धरी!
सुमिरत ही जन हो सनाथ जय जय जय हे गदाधरी!!
रुद्र अंश कपि रुप ले हरि सेवा दे सेवा ज्ञान भरी!
सुर रक्षक असुर विनाशक मुग्धकारी रुप धरी!!
योगी-यती पा साथ होते सनाथ थली-थली!!१!!जय------
छूटपन से ही मातु-पिता जन सेवा पावे खरी-खरी!
गुरु घर सब हित है निशाचरी माया हर पल हरी!!
ज्ञान पिपासु नवनिधि दायक लेवे सूर्य ज्ञान खरी-खरी!
सूर्य-शनी से जनहित में वरदान कोटिक है प्राप्त करी !!
सुमिरत ही नाथ तुम्हे कोटिन की है विपदा टली!!२!!जय------
विनती हमारी हर पल हरे हर भक्त की रोग व्याधि सगरी!
ध्यान धरे तेरा जो उसके परिजनो की है हर विपदा टरी !!
धन-मान बढे जन का नित हीजो है प्रभु की भक्ति करी !
हारी बाजी जीते ही वह जिसने है आस आप से करी!!
तोङते घमंड पल मे हर प्रिय का होवे जब अहंकार बली!!३!!जय------
धर्महित भीम भाई सारथी हरि के रथी का थामा ध्वज!
लो सौप दिया तुमको मैने भी है अपना युग ध्वज!!
पावे न मात ले ज्ञान संस्कार होवे आदर्श ये कुल ध्वज!
राष्ट्र हित रत सर्वदा फैलाये गर्व से राष्ट्रध्वज!!
राज्य प्रान्त शहर गाव सङक गली मे हो न कोई खलबली!!४!!जय------
                        

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

!!कथनी करनी!!


कथनी करनी देखो जग के,
पल-पल, छिन-छिन,नव-नव रुपों में!
एक हो जिनकी दोनो उनकी गणना मूर्खों में,
बदले दोनो पल-पल वो होशियार चालाको में!
भय रखना ही होगा परा शक्ति का अपने अपने मन में,
क्योकि शुभ नही ऐसी कथनी करनी कभी सभ्य समाजो में!
सोच बनी इसके प्रति अच्छी है जिनके जिनके मन में,
नहीं डरते वे किसी से किसी भांति इस जग में!
मूर्खों ने अच्छो को मूर्ख मान लिया है स्व मन में,
क्षणिक शान्ति सुख लाभ तुष्टि पाते पल-पल में!
ऐसो की स्थायित्व खोज पूर्ण न हो इस जग में,
पूर्ण होगी जो दोनो को एक करेगा तन- मन में!! 

!! शिव सोच !!

                                       शिव सोच की हो न कभी कमी,
                                       सकारात्मक नकारात्मक के बीच जो जमी!
                                      शिव अशिव शव सा हैसोच की है लत,
                                      जानते सब है सदा क्या सही क्या गलत!
                                      मान बढे बढाये बढ जाये इस जग में,
                                      जिनकी सोच सही हो निज तन में!
                                      दूषित दुर्गति दुर्निवार दोगली सोच,
                                      लाती है निश्चित जीवन मेंअकाट्य मोच!
                                      सत जानकर भी लाते क्यो मन में लोच,
                                     हर हाल हर हर हर सा कर लो शिव सोच!                        

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

सुआचरित हो भारती,हे सीता त्रास हरन

                                          पतित पावन जन भावन,हे अंजना नंदन!
                                          प्राण प्रण धन मान हित,स्वीकार हो वंदन!!१!!
                                          केसरी सुत तू रामदूत,लखन के प्राण रक्षक!
                                          संकट मोचक हर जन का,है तू मेरा संरक्षक!!२!!
                                          आप जिसके है संरक्षक,हे पवनसूत हनुमान!
                                          कभी खो न सके वह जन,स्व धन मान सम्मान!!३!!
                                          मानवों का दानवपन, मचा रहा क्रन्दन!
                                          मिटाये कालनेमिसा,हे असुर निकन्दन!!४!!
                                          इस धरा पर नारियो,हो रहा नित चिरहरन!
                                         सुआचरित हो भारती,हे सीता त्रास हरन!!५!!

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

मै ईष्ट देव के चरणों में हूं नत-मस्तक

   
                       मैं ईष्ट देव के चरणों हूं नत-मस्तक,
                       करु प्रार्थना हो हर पल सुखो का दस्तक!!
                       तू एकादश रुद्र पवनतनय बजरंगबली!
                       तेरी ही हुंकार से भक्तो की विपदा टली!
                       हे रामदूत तू ही हो हर राम-भक्त की जान!
                       हे केसरीसुत हनुमान रखो किंकरो का मान!
                       आस लिए जनहित की निहारे जुगल छबि एकटक!!१!!
                       महावीर से हारे सब चाहे हो अतिकाय अकंपन कुंभकरन!
                       सब ओर दिखती आपकी कीर्ति जब हुआ राम-रावन का रन!
                       ज्ञान मान जन धन हेतु जन जन करे तेरा चरण- वन्दन!
                       अंजन सा ज्ञान सिखाये नित अंजनिसुत मारुति नन्दन!
                       है लालसा मन में देखू मैं आपकी चमकती छबि लकलक!!२!!
                       मंगल का व्रत मंगल लावे व्रती बने आपके लायक!
                       बनूं मैं तव चरण पायक हे बल बुद्धि विद्या दायक!
                       अष्ट सिद्धि नव निधि पूरित हो हे कलयुग के नायक!
                       तव सुमिरत भागे भूत पिशाच हे रोग शोक के नाशक!
                       भूलू न किसी पल आपको करे न कभी दिल धकधक!!३!!
                       सुग्रीव विभीषण जाम्बवान यूथपति अंगद बलवान!
                       सबकी सुन सबकी माने सेवक सच हे हनुमान!
                       कल्याण कर  भारत का करे इसे हसता चमन!
                       बने धरा ऐसी कि हो न किसी का चरित्र हनन!
                       जन जन रखे मान सम्मान हर नर-नारी का हर गली हर सङ्क!!४!!
                         





रविवार, 23 दिसंबर 2012

यह कैसा है लोकतन्त्र

यह कैसा है लोकतन्त्र,जिसमे हम है परतन्त्र,
सत्तासीन सफेदपोश, खो देते जब अपना होश!
खोखले वादे दावो से,वोट ले लेते शहर गाँवो से। 
विकास की गंगा की जगह होता विनाश का नृत्य नंगा।
अनाचार-अत्याचार खेल रहा खेल है द्वार-द्वार!
केन्द्र हो या रज्य अंधी गूंगी बहरी हो गयी है सरकार!
होता कभी भजन था सङको पर सार्वजनिक स्थानों पर!
हो गया है सीमित अब यह केवल सुजन मन मानस पर!!
नृत्यादि शोभित थे नृत्यशाला नाट्यशाला व कोठो पर!
नग्न-नृत्य हो रहा अब गली-गली सङ्को व जनस्थानों पर।। 
चिन्ता सुरक्षा की कर रही जहां सबको त्रस्त!
जहां सारी एजेसियां हो रही है पस्त!!
वादो तक सीमित हो जाय जहां जनतन्त्र!
तब सोचना जन-जन को होगा,यह कैसा है लोकतन्त्र !! 

इन्हे बताना क्या

सत्य- असत्य,ईमान- बेईमान का भेद बताना क्या?
जानकर बेईमानी करने व झूठ बोलने वालो को जताना क्या---
ज्ञान-अज्ञान,मान-सम्मान को समझाना क्या?
अज्ञानी बनने,अपमान करने वालो को सुनाना क्या-----
सचरित्र-दुस्चरित्र,कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के बारे में सिखाना क्या?
चरित्र च्युत कर्त्तव्य पतित को इसकी महत्ता बताना क्या---
जब जानकर मानकर गलत को अपनाये,
तब विचार करना ही होगा कि सत लोग ऐसे को कैसे भाये?
छोटे-बङे,अच्छे-भले के अन्तर को कहना क्या----
अरे ये तो सब कहते भी है,सब समझते भी है,
तब इन्हे बताना क्या तब इन्हे बताना क्या?
परहित परोपकार परमार्थ पर सेवा व पुण्य ज्ञान!
दे देवे स्वयं ही सब को सब प्रकार का धन-मान सम्मान!!